“छुट्टी दे दो अब श्रीमान”
मास्साब मत पकड़ो कान।
है जुकाम से बहुत थकान।।
सरदी से ठिठुरे हैं हाथ।
नहीं दे रहे कुछ भी साथ।।
नभ में छाये काले बादल।
भरा हुआ जिनमें शीतल जल।।
आज नहीं लिखने की मर्जी।
सेवा में भेजी है अर्जी।।
दया करो हे कृपानिधान!
छुट्टी दे दो अब श्रीमान।।
जल्दी से अब घर जाऊँगा।
चाय-पकौड़े मैं खाऊँगा।।
कल जब सूरज उग जायेगा।
समय सुहाना तब आयेगा।।
तब मैं आऊँगा स्कूल।
नहीं करूँगा कुछ भी भूल।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)