ग़ज़ल
थकी थकी सी’ दिखी थी, तनाव ऐसा था
नकारना था’ कठिन वह, दबाव ऐसा था |
कभी नहीं मिले’ भरपेट खाद्य निर्धन को
गरीबी’ से सभी’ पीड़ित, अभाव ऐसा था |
उथल पुथल हुआ सामान के दरों में जब
खरीदना नहीं’ आसान, भाव ऐसा था |
ये ज़ख्म भी अभी’ ताज़ा है’, क्या कहें हालात
तमाम जिस्म ही घायल था, धाव ऐसा था |
मेरे समझ में’ नहीं कुछ भी’ आई’ उनकी बात
हरेक बात मुअम्मा घुमाव ऐसा था |
हरेक दल ने’ किया यत्न युध्द समतल पर
बहुत कठिन था’ विजय यह. चुनाव ऐसा था |
नए मकान बने जो सभी लिए नेता
सभी गरीब को बाँटे, सुझाव ऐसा था |
हरेक स्वांस में ‘काली’ वही तेरा अहसास
हरेक रूह में’ तेरे झुकाव ऐसा था |
— कालीपद ‘प्रसाद’