ग़ज़ल
तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ मैं
मुहताज़ के लिए कभी पत्थर नहीं हूँ मैं |
वादा किया किसी से निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से तो बदतर नहीं हूँ मैं |
वो सोचते गरीब की औकात क्या नयी
जनता हूँ शाह से कहीं कमतर नहीं हूँ मैं |
जनमत ने रहनुमा को जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी नौकर नहीं हूँ मैं |
अल्लाह ने दिया मेरा जीवन, करीम हैं
उन्नत नसीब लान से ऊपर नहीं हूँ मैं |
समझो मुझे प्रवाहिनी सरिता, बुझाती प्यास
खारा नमक भरा हुआ सागर नहीं हूँ मैं |
हर बात पर विकाश की बातें नहीं मैं की
मंत्री या बेवफा को ई रहबर नहीं हूँ मैं |
इस देश की वजूद, हिफाज़त के वास्ते
खुश हो चढ़ूँ सलीब पे , कायर नहीं हूँ मैं |
— कालीपद ‘प्रसाद’