ऐ ख़ुदा ऐसा नही जेहाद आए
साथ जिसके धार्मिक उन्माद आए
ऐ ख़ुदा ऐसा नही जेहाद आए
भूल कल कोई हुई होगी यक़ींनन
आज फिर से ख़्वाब में अजदाद आए
बस इसी में ज़िन्दगी गुजरी हमारी
कौन पहले कौन किसके बाद आए
सर चढ़ा हो कामयाबी का नशा जब
फिर कहाँ तहजीब किसको याद आए
आदमी को आदमी से जोड़ दे जो
धर्म का ऐसा कोई उत्पाद आए
मौत आने तक रही उम्मीद उसको
आज सरकारी कोई इमदाद आए
आरजू बंसल यही है शब्द अंतिम
इस जुबां पर हिन्द ज़िन्दाबाद आए
सतीश बंसल
०३.०९.२०१८