धूप को चाँदनी नहीं लिखते
धूप को चाँदनी नहीं लिखते
आँसुओं को खुशी नहीं लिखते
जो कलमकार हैं किसी हालत
रात को दिन कभी नही लिखते
इश्क जो रूह तक नही पहुँचे
हम उसे आशिकी नहीं लिखते
उनको कैसे अदब नवाज लिखूँ
जो सही को सही नही लिखते
ग़ैर के काम जो नहीं आती
हम उसे ज़िन्दगी नहीं लिखते
जिसको लिखकर हुए अमीर कयी
लोग कुछ बस वही नहीं लिखते
जो त’अस्सुब दिलों में रखते हैं
सब उन्हें आदमी नही लिखते
सतीश बंसल
०९.०९.२०१८