सामने वो अगर नही आता
सामने वो अगर नही आता
चैन फिर रात भर नही आता
कुछ किये बिन बुलंदियाँ पा लूँ
मुझको ऐसा हुनर नही आता
मुफ़लिसी का पता चला जबसे
कोई अपना इधर नही आता
जोहते बाट थक गयीं आँखे
घर पे लख्ते जिग़र नही आता
जो कि अपनों तलक रहे सीमित
उस दुआ में असर नही आता
जबसे पाबंदियाँ लगीं उस पर
चाँद छत पर नज़र नही आता
वक्त की क़द्र कीजिये बंसल
ये कभी लौटकर नही आता
— सतीश बंसल
३१.०८.२०१८