कविता – जन्नत से प्यारा
हिमगिरि का ताज सजाये जो।
सबकी पहचान बताये जो।।
स्वर्ण सी चमक दिखाये जो।
कितना प्यारा लगता है जो।।
ऋषि मुनियों की खान है जो।
सबके दिलों की जान है जो।।
हम सबका स्वाभिमान है जो।
जन्नत से प्यारा लगता है जो।।
हरियाली की ओढ़े चुनर जो।
समृद्धि के गीत गाता है जो।।
खेतों और खलिहानों वाला।
कलकल धुन सुनाता है जो।।
नदियों झीलों तड़ाग वाला।
ऊँचे ऊँचे सुन्दर टीले वाला।।
बालू के रेतीले धोरों वाला।
कितना रम्य रिझाता है जो।।
गढ़ कोठे कंगूरों वाला है जो।
राजा रजवाड़ों वाला है जो।।
संस्कार संस्कृति वाला है जो।
विश्वगुरु भारत कहाता है जो।।
— कवि राजेश पुरोहित