कविता

मीठी मुस्कान

“मीठी मुस्कान😊

सच कहती है
एक मीठी  मुस्कान
न मैं हिन्दु , न सीख
न इसाई , न मुसलमान ।

न  मैं  गोरी  हूं
न रंग मेरा काला
सबके होठों पर
रहती हूं बनके उजाला।

मैं उल्लासित अर्न्तरात्मा
की हूं एक अभिव्यक्ति
सहजता से जीने की
एक संजिवनी शक्ति  ।

प्रेमरूपी ओस की बूंदों से
होती हूं मैं सिंचित
हिंसा, द्वेष, घृणा से
होता ह्रदय मेरा व्यिथत ।

न किसी से भेद-भाव
न अलग कोई पहचान
मेरी एक ही भाषा
मुस्कान,एक मीठी मुस्कान ।😊

         स्वरचित-ज्योत्स्ना पाॅल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]