ग़ज़ल
दिन को दिन, रात को रात लिखता हूँ।
क्या बुरा है गर सच्ची बात लिखता हूँ।
बहुत है गुलों की तारीफ करने वाले,
मैं इन काँटों के जजबात लिखता हूँ।
मैं समय हूँ, मुझ को है इख्तियार,
कभी शय और कभी मात लिखता हूँ।
सुर्ख लबों को गुलाबों का नाम दिया है,
पलकों की नमी को बरसात लिखता हूँ।
हर दर्द से वाकिफ हूँ, ये न समझना
मैं फ़कत अपने हालात लिखता हूँ।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”