मुझे उनका दीदार कई बार देना
मैं ग़मों से घिरा हुआ हूँ कई सदी से
तुम आना कभी तो नज़र उतार देना
माँ नहीं रही तो कमी बहुत खलती है
तुम आना तो मेरा आँगन बुहार देना
अँधेरों का शागिर्द ही हो गया हूँ जैसे
रौशनी सा तुम मेरा जीवन सुधार देना
वक़्त सारा उड़ गया काम-काजों में
मुझे भी अब कोई खाली इतवार देना
जिसे चाहा बस वही मेरा न हो पाया
मुझे न अब कोई रिश्तों का बाज़ार देना
तू चाहता है कि साँसें कुछ दिन और चलें
तो खुदा मुझे उनका दीदार कई बार देना
सलिल सरोज