कविता

जवानों के नाम

“देश के जवानों के नाम ”

हम सोते हैं चैन की नींद जब
वो बनते हैं पहरेदार
बुरी नज़र न डालो हम पर
करते हैं खबरदार ।

हमारे लिए फूलों की सेज है
उनके लिए काटों का बिछौना
बात-बात पर हम रो लेते
उनको आता है आंसू पीना ।

हम घरों में अपनों के संग
अकेले वो होते बियावानों में
आये जब अपनों की याद
रोक लेते आंसू नैनों में ।

वो खाते हैं सीने पर गोली
जिंदगी के मज़े हम लेते हैं
उन मांओं के लिए सोचो एकबार
जिनके बेटे शहीद होते हैं ।

उन मासूमों का क्या है हाल
मिला न जिनको पिता का साथ
गिरे जब वो लड़खड़ाकर
पकड़े नहीं पिता ने हाथ ।

मेहंदी का रंग फीका भी न हुआ
मिट गया मांग का सिंदूर
व्यथा समझो उन बेवाओं की
रोती है जो बैठे कोसों दूर ।

जिसने दिये जनम ऐसे सपूतों को
उन मांओं को मेरा सलाम
अर्पित कर दिये जिन्होंने
दिल के टुकड़े को देश के नाम ।

अपने दर्द का रोना छोड़ो
उनके दर्द को समझो यारों
भारत मां के ऐसे सपूतों पर
सियासत न करो यारों
बहे जो रक्त उनके तन से
उसे पानी न समझो यारों ।

15 अगस्त पर जवानों को समर्पित

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com