गीतिका/ग़ज़ल

है बाज़ार बहुत गर्म दरिंदगी का

तुम लेके आओ भीड़,मैं मुँह मोड़ लेता हूँ
इंसानियत से अब हर रिश्ता तोड़ लेता हूँ

जानवरों के लिए इंसानों की अब बलि दो
इतिहास के पन्नों में ये क़िस्सा जोड़ लेता हूँ

आतंक का साया बढ़ा दो तुम रोज़ बेइन्तहां
मैं आँखें बन्द करके अपनी राहें मोड़ लेता हूँ

तुम अब और ज्यादा जहमत मत उठाया करो
तुम इशारा करो,मैं अपनी गर्दन मरोड़ लेता हूँ

माहौल को कुफ्र बनाने का मज़मा तैयार है अब
तो मैं भी अब मोहब्बत का चश्मा फोड़ लेता हूँ

कौन कितना वहशत और दहशत फैला सकता है
है बाज़ार बहुत गर्म दरिंदगी का,मैं भी होड़ लेता हूँ

सलिल सरोज

Weeping Woman 1937 Pablo Picasso 1881-1973 Accepted by HM Government in lieu of tax with additional payment (Grant-in-Aid) made with assistance from the National Heritage Memorial Fund, the Art Fund and the Friends of the Tate Gallery 1987 http://www.tate.org.uk/art/work/T05010

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : [email protected]