आमने सामने
चलो कभी अपनी ऐसी मुलाक़ात हो जाये
आमने सामने बैठे हों और बात हो जाय
कुछ दिल की तुम कहो कुछ दिल से मैं कहूं —
कोई मीठी प्यार भरी गुफ़्तगूं हो जाये,
एक ‘शेर’ तुम कहो और एक ‘शेर ‘मैं कहूं-
और ज़िन्दगी ऐसे ही हंसी हंसी गुज़र जाये.
यूं तो सपनों में भी होती है रोज़ मुलाकात पर
सामने बात करने का मज़ा ही कुछ और है,
भाव निकलते हैं चेहरे से ,शब्दों का तो केवल शोर है,
थोड़ी फुर्सत तुम निकालो, थोड़ी फुर्सत मैं निकालूँ
रूबरू मेरे जो तुम हो, मैं भी अपना दिल बहला लूँ.
कुछ दिल की तुम कहो, कुछ दिल से मैं कहूं —
कोई मीठी प्यार भरी गुफ़्तगूं हो जाये,
चलो कभी अपनी ऐसी मुलाक़ात हो जाये.
— जय प्रकाश भाटिया