कविता -टी.वी और परिवार
अब तो टीवी बिना जीना दुश्बार हैं
सामने रात को टीवी आगे परिवार हैं
नौकर शादी में भी बीबी माँग लगातार
टीवी बिना न गौणा मुझको स्वीकार हैं
हार कर किश्तों पर चलता व्यबहार जो
लाया खोली में छोटा बक्सा उपहार हैं
घर में चलता व्यजनों का प्रोग्राम भी
नये प्रयोग से चखाना पत्नी का प्यार हैं
स्वादरहित को भी बढियां कहना लिहाज़
घर की खुशी के लिये बना रहे उपकार
बच्चों का भी डोरोंमोन और कृष्णा संसार
खेलना बाहर अब उनको लगता बेकार हैं
क्रोध में पति रिमोट से जान खबर सार
यूँ ही चलता जीवन इस युग कारोवार हैं
— रेखा मोहन