गज़ल
जानता हूँ कि न आएगा पलट कर तू
मैं एक मील का पत्थर हूँ और मुसाफिर तू
मुझे यकीन है तुझको भी इश्क है मुझसे
ये और बात है करता नहीं है जाहिर तू
तुझसे मिल के मेरी हस्ती ही मिट जाएगी
इक ज़रा-सी आबजू हूँ मैं, समंदर तू
सामने रहता हूँ तो मुझको देखता भी नहीं
तनहाई में मुझे ढूँढता है अक्सर तू
दर्द औरों का महसूस करना बंद कर दे
किसी रोज़ कहीं बन न जाए शायर तू
— भरत मल्होत्रा