बेटा !
कविता के पति जय अपनी ममी पापा के इकलौते बेटे थे, इसलिए शादी के चार पाँच महीने बाद ही सास और पति ने बेटे का फरमान जारी कर दिया था। देखो बहु हम लड़की लड़के में कोई भेदभाव नहीं रखते पर जय का न कोई भाई है न बहन अब इतनी दौलत घर बाहर बेटी को तो दिया नहीं जाता और बेटा हो जाएगा तो हमारे पूर्वजों का नाम भी आगे चलेगा और घर में रोनक हो जाएगी। कविता पर तो डर का साया मंडराने लगा था, पढ़ी लिखी होने के बावजदू वो भी यही सोचने लगी थी कि सही तो है। पर उसके घर पहली बेटी हुई, सास और पति दुखी तो नहीं थे पर पहला बच्चा है सोच कर चुप रहे। फिर दो साल बाद जब चोरी से टैस्ट कराया तो पता चला कि फिर लड़की है तो निकलवा दिया गया। फिर साल बाद टैस्ट में लड़की फिर वही पर इस बार कविता नहीं चाहती थी कि इसे भी निकलवा दिया जाए, पर घर का माहोल देख निकलवा दिया। फिर साल बाद कविता प्ररेगनेंट हुई पर इस बार उसने टैस्ट कराने से मना कर दिया था कहा जो मेरी किस्मत में होगा मुझे मंजूर है ये पाप है बेटे की चाह में बेटी को निकलवा देना। मैं अब आपकी कोईबात नहीं मानूंगी। पर घरवाले डरे हुए थे कहीं फिर लड़की न हो जाए और इस बार भी लड़की हुई थी। माँ बेटा तो चुप ही हो गए थे। कविता भी रो रही थी और कह रही थी आपने दोबार बेटा चाहते हुए बेटियों कोआने नहीं दिया पर आ गई ना जिसने आना था हम सबने पाप किया है बेटियां निकलवा कर। जिनके बेटे भी हैं वो कौन से ममी पापा के साथ रहते हैं, वो तो ट्ररेनिंग भी बाहर, नौकरी भी बाहर और शादी कर के बाहर ही सैटल हो जाते हैं हमारे मौहल्ले में ही देख लो सब बुजुर्ग ज्ययादातर अकेले ही रहते हैं। बेटियाँ आजकल कहाँ बेटों से कम हैं अपनी सोच को बदलो और पश्चचाताप कर लो जो पाप किया है।