युग पुरुष
जीवन तो छोटा सा है
इसकी क्या चिंता करना।
समर्पित कर मातृभूमि को
कफन ओढ़ निकल पड़ना।
मत सोचो जीवन पथ पर
सुकोमल पुष्प मार्ग मिलेगा।
साथी बना कंटक को अपना
कभी न कंटक पग लगेगा।
जीवन की इस जीत-हार पर
तुम क्यों हंसते- रोते हो ?
इन क्षणिकाओं में उलझ कर
क्यों तुम धेय को तजते हो ?
प्रभु मूरत आत्म हृदय में रख
निर्भय हो कर्म करते जा।
चिंतन अपने रिपु का छोड़
पथ पर सुकर्मों की गति बढ़ा।
जो सम रहकर जीते जीवन
कभी नहीं पछताते हैं।
पुण्य भूमि का कर्ज चुका कर
युग पुरुष बन जाते हैं।
— निशा नंदिनी