सामाजिक

सीवर में मौत

“सीवर में मौत” शीर्षक से मेरा यह लेख एक ही दिन 9-8-17 को देश के दो प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समाचार पत्रों क्रमशः “राष्ट्रीय सहारा” और “हिन्दुस्तान” में प्रकाशित हुआ था, लेकिन बेहद दुख और अफ़सोस इस बात की है कि इन गरीबों की मौत अभी भी ‘उसी कारण’ से हो रही है । आज भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सीवर में दम घुटकर गरीबों के मरने की घटनाओं के समाचार कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैैंं । इस अत्यंत दुखद समाचार को पढ़ा … मन अत्यंत दुखी और खिन्न हो गया ..एक ऐसे देश में जो अपने को “विश्व महाशक्ति” बनने का दावा कर रहा हो ,अपने प्रथम प्रयास में ही सुदूर अंतरिक्ष में कई करोड़ किलोमीटर दूर “मंगल ग्रह” पर अपना अंतरिक्ष यान पहुँचा देने वाले देश के लिए, यह बहुत ही शर्म की बात है ,कि यहाँ के गरी़ब लोग “सीवर की सफाई” के लिए अपने जान को जोखिम में डालकर सीवर में उतरकर मौत के मुँह में चले जाते हैं ।
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष में काश्मीर जैसे आतंक से पीड़ित राज्य में केवल साठ सुरक्षाकर्मियों की आतंकियों के हाथों जान गवानी पड़ी लेकिन अत्यंत दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि पिछले एक साल में देश में “सीवर में दम घुटने” से 22327( बाइस हजार तीन सौ सत्ताइस) भारतीय नागरिक अपने जान गवां बैठे ।
         कितनी दुखद स्थिति है कि विदेशों से हर चीज आयात करने वाला यह देश पश्चिम से “सीवर की सफाई करने वाला मशीन” क्यों नहीं आयात कर रहा है? आपको जानकारी के लिए बता दूँ कि विकसित देशों में सीवर में दम घुटने से एक व्यक्ति की भी मौत  नहीं होती । सीवर सफाई का सारा काम वहाँ मशीनों से ही होता है। वास्तव में यहाँ की सरकारें संवेदनाविहीन हो गईं हैं, चाहे किसान आत्महत्या कर के मरें, मरते रहें , रेलगाड़ियों के एक्सीडेंट से लोग हर साल मरें ,मरते रहें , वैसे ही ये सीवर में दम घुटने से मरने वाले मरते रहें , इन सरकारों की कान पर जूँ भी नहीं रेंगती …?
अरबों -खरबों रूपये के बजट और इतना ही पैसे बैंकों से लेकर पैसे भागने वालों पर सरकार कुछ नहीं कर पा रही है ,तो क्या इन गरीबों के लिए कुछ बजट आबंटित कर हर चीज आयात करने वाली यह सरकार ऐसे मशीनों की आयात नहीं कर सकती ? ,जिससे इन गरीबों को बजबजाते गटर में घुसना ही न पड़े , आखिर विदेशों में तो सीवर में डूब कर कोई क्यों नहीं मरता ? इस बेहद क्रूर और अमानवीय सरकार की आँखें कब खुलेंगी ? क्या सत्ता के अहंकार में चूर ये सत्ताधारी ऐसी अमानवीय त्रासदी वाले समाचारों को अखबारों में पढ़ते ही नहीं या पढ़कर डस्टबीन में डाल देते हैं ? ,आखिर इस बेहद वीभत्स समस्या का समाधान अब तक क्यों नहीं हुआ ?
सीवर में मरते इन लोगों की इस कथित लोकतंत्र में इसलिए भी सुनवाई नहीं है क्योंकि ये लोग गरीब ,मज़लूम ,वंचित ,समाज के हाशिये पर पड़े लोग हैं , इनके मरने , इनके बीबी, बच्चों , माँ-बाप को अनाथ और बेसहारा होने से ‘आधुनिक राजाजी’ को क्या फर्क पड़ता है ? इन बेचारों के लिए आधुनिक मशीन मंगाने से बेहतर है धर्म के नाम पर और पुण्य के नाम पर ,अपने थोक रेट में वोट पाने के लिए ‘धर्म नगरी प्रयाग के कुंभ मेले’ पर करोड़ों फूँक दिया जाय ? इस आधुनिक समय में इस कृत्य पर हमें शर्म आनी चाहिए !
 
-निर्मल कुमार शर्मा
 
(मेरा यह मार्मिक लेख राष्ट्रीय सहारा में 21-9-18 को प्रकाशित हुआ है)

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]