गीतिका/गजल
इश्क तो अब आजमाया जा रहा है।
खेल दिलो का दिखाया जा रहा है।।
टूटकर बिखरता है बेचारा बार बार।
शीशे की माफिक बताया जा रहा है।।
खेलने वाले खेल लेते है ये खेल भी।
मरकर भी इसे आजमाया जा रहा है।।
जो रूठकर चले गये इस जहान से।
उन्हे ही गुनाहगार बताया जा रहा है।।
कहां आते है यहां लौटकर जाने वाले।
सुन मुहब्बत को बरगलाया जा रहा है।।
जानकर ये जहर पियो मत मेरे यारा।
हुस्न को बेसबब रूलाया जा रहा है।।
गये यहां से हीर रांझा भी तड़पते हुये।
इश्क को नही घर दिखाया जा रहा है।।
खत्म होता नही क्यूं नाम इसका कहो।
बंदिशो के नाम से जलाया जा रहा है।।
किसने खोजा इसको किसने खबर ली।
ये बावफा होकर भी रूलाया जा रहा है।।
— प्रीती श्रीवास्तव