बेटियां
” बेटियां ”
बेटी कैसे होती पराई
बात ये मुझको समझ ना आई,
बचपन बीता जिस आंगन में
क्यों परायों सी होती उस आंगन में ?
क्यों पावों में बेड़ियां पड़ जाती है
करने दो उसे जो मन भाती है,
क्यों बढ़ते कदम रोकते हैं हम
कुछ कर गुजरने का उस में है दम।
मां के हृदय का है वह टुकड़ा
बापू के हृदय की है धड़कन,
कह कर पराया धन उसे
करो ना उसका सदा अपमान।
एक सुकोमल कली को है खिलना
चहुं ओर सुगंध है बिखेरना,
ढूंढने दो उसे अपना आकाश
करो उस पर संपूर्ण विश्वास।
वह भी उड़ सकती है गगन में
मुस्काने दो बनके फूल चमन में,
लहरा सकती है विजयी पताका
बजेगा एक दिन सुकीर्ति का डंका।
ऊंचा होगा माता पिता का शीष
दो भरपूर उसे प्यार का आशीष,
बेटी होने पर ना करो आंखें नम
बेटियां नहीं होती किसी से कम।
पूर्णतः मौलिक- ज्योत्सना पाॅल ।