कविता

ये बेटियां

                                            बेटी दिवस पर विशेष
जो घर भगवान को पसंद होता है,
उसी घर में होती हैं बेटियां.
रोशनी हरपल रहती है वहां, 
जिस घर में मुस्कान बिखेरती हैं बेटियां.
जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो, 
घर में उजाला भी करती हैं बेटियां.
बिना पंखों के भी एक दिन उड़ जाती हैं बेटियां, 
अपने पिता के लिए परी का रूप होती हैं बेटियां.
बेटियों से आबाद होते हैं घर-परिवार,
वह घर अधूरा होता है, जहां नहीं होती हैं बेटियां.
बाबुल के घर अभाव में पलने पर भी,
स्नेहसिक्त आशीर्वाद देती हैं बेटियां.
उनसे जाकर पूछो कितनी अनमोल होती हैं बेटियां,
जिनके घर नहीं पधारी हैं बेटियां.
थोड़े-से संस्कारों से संस्कारित होकर,
साहस से सराबोर होती-करती हैं बेटियां.
संसार की सृजनहार हैं ये बेटियां,
घर-परिवार-संसार की रौनक होती हैं ये बेटियां.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “ये बेटियां

  • मनमोहन कुमार आर्य

    मुझे व्हाटशप वाली कविता आप तक पहुँचाने का तरीक़ा समझ में आ गया है। कविता प्रस्तुत है। आशा है आप भी इसे पसंद करेंगी। सादर।
    vvvvvvvvvvvv

    बेटी जब शादी के मंडप से…
    ससुराल जाती है तब …..
    पराई नहीं लगती.
    मगर ……
    जब वह मायके आकर हाथ मुंह धोने के बाद सामने टंगे टाविल के बजाय अपने बैग से छोटे से रुमाल से मुंह पौंछती है , तब वह पराई लगती है.
    जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी खड़ी हो जाती है , तब वह पराई लगती है.
    जब वह पानी के गिलास के लिए इधर उधर आँखें घुमाती है , तब वह पराई लगती है.

    जब वह पूछती है वाशिंग मशीन चलाऊँ क्या तब वह पराई लगती है.
    जब टेबल पर खाना लगने के बाद भी बर्तन खोल कर नहीं देखती तब वह पराई लगती है.

    जब पैसे गिनते समय अपनी नजरें चुराती है तब वह पराई लगती है.
    जब बात बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है तब वह पराई लगती है…..

    और लौटते समय ‘अब कब आएगी’ के जवाब में ‘देखो कब आना होता है’ यह जवाब देती है, तब हमेशा के लिए पराई हो गई ऐसे लगती है.
    लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद
    जब वह चुपके से
    अपनी आखें छुपा के सुखाने की कोशिश करती । तो वह परायापन एक झटके में बह जाता तब वो पराई सी लगती

    नहीं चाहिए हिस्सा भइया
    मेरा मायका सजाए रखना
    कुछ ना देना मुझको
    बस प्यार बनाए रखना
    पापा के इस घर में
    मेरी याद बसाए रखना
    बच्चों के मन में मेरा
    मान बनाए रखना
    बेटी हूँ सदा इस घर की
    ये सम्मान सजाये रखना।
    …..
    बेटी से माँ का सफ़र (बहुत खूबसूरत पंक्तिया , सभी महिलाओ को समर्पित)
    बेटी से माँ का सफ़र
    बेफिक्री से फिकर का सफ़र
    रोने से चुप कराने का सफ़र
    उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र
    पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी ।
    आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं ।
    पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को सर पे उठाया करती थी ।

    आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं ।
    पहले जो छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती थी
    आज बो बड़ी बड़ी बातों को मन में छुपाया करती हैं ।
    पहले भाई,,दोस्तों से लड़ लिया करती थी ।
    आज उनसे बात करने को भी तरस जाती हैं ।
    माँ,माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी ।
    आज माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं ।
    10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था ।
    आज 7 बजे उठने पर भी
    लेट हो जाया करती हैं ।

    खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था ।
    आज खुद के लिए एक कपडा लेने को तरस जाया करती है ।
    पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया करती थी ।
    अब पूरे दिन काम करके भी काम चोर
    कहलाया करती हैं ।
    एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करती थी।
    अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करती हैं ।
    ना जाने कब किसी की बेटी
    किसी की माँ बन गई ।
    कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई …..
    ?

    बेटी है तो कल हे।
    बहुत प्यारी होती है बेटीया न जाने लोग बोझ क्यु समझते है बेटीया.

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते बहिन जी, आपकी यह कविता बहुत अच्छी दिल को छू लेने वाली लगी। आज ही एक मित्र से बेटी से सम्बंधित व्हाटशप पर फॉरवर्ड होकर आयी कविता भी बहुत अच्छी लगी थी। मैं उसे आपको भी शेयर करना चाह रहा था। आपका ईमेल न होने के कारण उसे आपको भेज नहीं सका। पुनः आपकी कविता के लिए धन्यवाद्। बेटी सचमुच माता पिता के लिए परमात्मा का वरदान हैं। सादर।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि यह रचचा आपको बहुत अच्छी, रोचक और सशक्त लगी. आपने भी बहुत अच्छी कविताएं लिख भेजी हैं, जो मार्मिक होने के साथ-साथ यथार्थ भी हैं. बेटी की महिमा अपरम्पार है. हमारी ई.मेल है-
      [email protected]

      ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    माता-पिता की शान हैं बेटियां,
    परिवार का अभिमान हैं बेटियां,
    बेटियां किसी से कम नहीं,
    सृष्टि की सृजनहार हैं बेटियां.

    बेटी को सक्षमता देना,
    फ़र्ज़ हमारा बनता है,
    बेटी भी देश की शान बढ़ाती,
    सबको बताना बनता है.

    बेटी बचाएं, बेटी पढ़ाएं,
    यह संकल्प हमारा है,
    समय पड़े तो बिटिया रानी,
    बनती सबल सहारा है.

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