राजनीति का शुद्धिकरण
आज इस देश को सबसे ज्यादे अगर किसी चीज ने नुकसान पहुँचाया है तो वह इस देश के समाज में बुरी तरह रची-बसी जातिवादी व्यवस्था से उपजी संकीर्णता , भेदभाव और वैमनष्यता है । यह देश विगत् में हजारों सालों से जातिगत संकीर्णता और फूटपरस्ती की वजह से ही गुलामी की पीड़ा को झेलने को अभिषप्त रहा है ।
आज के वर्तमानकाल के लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आई तमाम बुराईयों की वजह भी भारतीय समाज का जातिगत् रूढ़ियों से ग्रस्त होना ही है । आज मतदान के समय अपने संकीर्ण सत्ता के स्वार्थ के वशीभूत होकर भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल जातिगत् आधार पर बँटे भारतीय समाज में जाति का सहारा लेकर ही चुनाव जीत जाते हैं । उम्मीदवारों के चयन में योग्यता ,शैक्षणिक योग्यता ,इमानदारी ,सचरित्रता आदि सभी गुण जाति ,बाहुबल और धन के प्रभाव के सामने गौड़ हो जाते हैं और यही देश की दुर्दशा का मुख्य कारण है।
आज की वर्तमान लोकसभा अब तक की सर्वाधिक दागी और अपराधी सांसदों से भरी पड़ी है । ऐसे चरित्र के लोगों से किसी अच्छे वैचारिक और नैतिक और देशहित कानून बनाने की कल्पना करना ही व्यर्थ है । भारत का चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय बार-बार इस देश के लोगों से अपील कर रहे हैं कि संसद में अनपढ़ों ,अपरा़धियों, दागियों ,बलात्कारियों ,माफियाओं की जगह अच्छे पढ़े-लिखे ,स्वच्छ छवि और ईमानदार लोगों को भारतीय संसद में चुनकर भेजिए, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्तर के दल भी ये ‘खतरा’ उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं तो इसका कारण ये है कि उन्हें ऐसे उम्मीदवार चाहिए जो ‘किसी भी तरह से’ वह सीट निकालने में सक्षम हो और यह तभी सम्भव है जब वह उम्मीदवार धन और बल दोनों में बहुत मजबूत हों ।
इसमें सबसे बड़ी समस्या भारतीय समाज का अशिक्षित और धर्मभीरू होने के साथ-साथ, जातियों ,उपजातियों ,ऊँचनीच और धर्मों में विभक्त होना है । यह बंधन ज्योंही थोड़ा शिथिल होता है ,त्योंही राजनैतिक दल अपने सत्ता के स्वार्थ हेतु जाति और धर्म की जकड़न का पेंच और जोर से कस देते हैं । इसका यही समाधान है कि आमजन राजनैतिक रूप से जागरूक बने और योग्य उम्मीदवारों का चयन इमानदारी से अपने विवेक से बगैर जाति और धर्म के पचड़े में पड़े ,करे ,तभी राजनैतिक दल भी दागियों और भ्रष्टों की जगह अच्छे लोगों के चुनाव को बाध्य होंगे । यह लोकतंत्र और संसदीय शासन भी तभी सार्थक और सफल होगा ।
— निर्मल कुमार शर्मा