अंतश्चेतना के संकेत
थोड़ा सहज हो जाने के बाद डी.एस.पी. साहब रूपा को अपने घर ले आए थे. अपनी पत्नि स्नेहा को रूपा की सुरक्षा का जिम्मा सौंप वे पुनः अपने कार्यालय चले गए. स्नेहा ने न रूपा से कुछ पूछा, न पति से. डी.एस.पी. की पत्नि होने के कारण सुरक्षा का अर्थ वह अच्छी तरह जानती-समझती थी. उसने बस स्नेह से रूपा को अपना बना लिया और एक कमरे में बिठाकर उसके खाने-पीने का इंतजाम करने चली गई. अकेली बैठी स्नेहा को कल से अब तक की घटनाएं याद आ रही थीं.
वॉश बेसिन पर हाथ धोते उसने कल अपने बाथरूम में फूलों की डिजाइनदार हल्की भूरी टाइल्स पर मकड़ी को देखा. ”मकड़ी और यहां!” उसने अपने आप से पूछा था, इतने महीनों से तो नहीं दिखी! उसने हौले-से पेपर रोल का एक टुकड़ा लेकर उसे धीरे-से, प्यार-से पकड़ना चाहा, पर पकड़े जाने की आशंका से ही वह छिटककर भागी थी.
रात को नींद में सपना आया था. एक डरावना हाथ उसकी ओर बढ़ रहा है. वह चीखी भी थी. शुक्र है किसी ने उसकी चीख सुनी नहीं. वह पानी का घूंट पीकर सो गई थी.
सुबह वह सैर के लिए निकली ही थी, कि एक हाथ उसकी ओर बढ़ा था- ”रुक जाओ.” रूपा ने कहा था.
”रुकना तुम्हें है, बचकर कहां जाओगी?” डरावने हाथ वाले आदमी ने कहा था.
”किसको रुकना है? यह तो वक्त ही बताएगा.” कहते हुए रूपा ने कोट की जेब से लाल मिर्च की पुड़िया निकाली और उसकी आंखों की ओर उछाल दी थी. उसे रुकना पड़ा था और रूपा भाग ली थी.
रूपा को सड़क की ओट लेकर एक दुबका हुआ चूहा दिखा. रूपा संकेत समझकर दीवार की ओट में दुबक गई थी. वहीं से उसे पुलिस चौकी का संकेत पट्ट दिखाई दिया. वह उस ओर भागी थी. पुलिस चौकी पर ही उसे डी.एस.पी. साहब मिल गए थे. सारी बात सुनकर उन्होंने एक जीप उस ओर भेजी थी और अब तक आंख मसलता वह शोहदा पकड़ा गया था. शोहदे के आने से पहले ही नेकदिल डी.एस.पी. साहब रूपा को अपने घर स्नेहा की स्नेहिल सुरक्षा में छोड़ने के लिए चल पड़े थे, ताकि पुनः रूपा उसके सामने न पड़ सके. रास्ते में ही उन्होंने रूपा के ममी-पापा से बात करके सारा किस्सा समझा दिया था. उन्होंने उनको रात को अपने घर डिनर पर भी निमंत्रित कर दिया, ताकि वे रूपा के लिए 3-4 दिन का सामान भी ला सकें और उससे मिल भी लें.
रूपा तय नहीं कर पा रही थी, कि वह मकड़ी, सपना, सैर पर निकलते समय लाल मिर्च की पुड़िया लेने का विचार, दुबका चूहा, पुलिस चौकी का संकेत पट्ट और नेकदिल डी.एस.पी. साहब, ये सब किसी अंतश्चेतना के संकेत थे या फिर कुछ और! बहरहाल वह इन सबके लिए जगत नियंता को धन्यवाद देना नहीं भूली थी.
अनेक बार ऐसा संयोग होता है, कि आने वाली विकट परिस्थिति से बचने के लिए अंतश्चेतना के संकेत ही हमारे रक्षक बनने के लिए हमें तैयार करते रहते हैं. अंतश्चेतना के ये संकेत कैसे और क्यों इंगित होते हैं, ये तो जगत नियंता ही जानता है.