कविता

अस्तित्व

“अस्तित्व”

मैं अपने आप को
तलाशती रही और
तुम कहते रहे –
तुम हो मेरे अपने ।
मैं सहज सब स्वीकारती रही
जो तुमने कहा ।
तुमने मुझे विश्वास दिलाया-
तुम मेरी दुनिया हो,
मेरी पहचान हो,
तुममें तलाशती रही
अपना अस्तित्व ।
कभी मैंने जाना ही नहीं
तुमसे अलग कोई
पहचान है मेरी ।
एक अलग आकाश है
जहाँ मैं बुन सकती हूँ
अपने सपनों का ताना-बाना ।
आज जब तुम नहीं हो ,
तोड़ दी वो दीवारें
जो बना रखी थी
मेरे चारों ओर ।
उतार फेंकी वो बेड़ियां
जिसमें जकड़ी
विवश खड़ी थी मैं ।
पहचाना स्वयं को
लिख सकती हूँ मैं भी
अपनी कहानी अपने हाथों ।
रच सकती हूँ
एक नया इतिहास ।
नारी केवल शतरंज का
एक मोहरा नहीं,
जीवन समरांगन में
एक कुशल योध्दा है ।

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]