अस्तित्व
“अस्तित्व”
मैं अपने आप को
तलाशती रही और
तुम कहते रहे –
तुम हो मेरे अपने ।
मैं सहज सब स्वीकारती रही
जो तुमने कहा ।
तुमने मुझे विश्वास दिलाया-
तुम मेरी दुनिया हो,
मेरी पहचान हो,
तुममें तलाशती रही
अपना अस्तित्व ।
कभी मैंने जाना ही नहीं
तुमसे अलग कोई
पहचान है मेरी ।
एक अलग आकाश है
जहाँ मैं बुन सकती हूँ
अपने सपनों का ताना-बाना ।
आज जब तुम नहीं हो ,
तोड़ दी वो दीवारें
जो बना रखी थी
मेरे चारों ओर ।
उतार फेंकी वो बेड़ियां
जिसमें जकड़ी
विवश खड़ी थी मैं ।
पहचाना स्वयं को
लिख सकती हूँ मैं भी
अपनी कहानी अपने हाथों ।
रच सकती हूँ
एक नया इतिहास ।
नारी केवल शतरंज का
एक मोहरा नहीं,
जीवन समरांगन में
एक कुशल योध्दा है ।
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना