इबादत
इबादत ही तो है जिंदगी ,
कर्म करो फल की इच्छा मत करो ।
अहसान ही तो है जिंदगी ऊपरवाले की नाचते रहो उफ्फ मत करो ।
चलते रहो अनजान रास्तों पर ,
मंजिल की तलाश में तौबा मत करो ।
अजूबा है जिंदगी और मौत ,
महसूस करो अनुभव से सीखते रहो ।
नाहक जुल्म करते हो दिलों पर ,
करीब आने की हसरतें मत करो ।
रेत जैसी जिंदगी का क्या है पता ,
मुट्ठियों को भींचकर खुद को जलाया मत करो।
दर्द हो रहा है तो हुआ करे ,
आंसुओं को फिलहाल जाया न करो।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़