गीत/नवगीत

गीत

जाने-अनजाने ही जुड़ गई
तुमसे मेरी हर अभिलाषा
तुम्हें समर्पित मेरा जीवन
अर्पण तुमको ही हर आशा

मन-मंदिर में जो स्थापित है
रत्न-जड़ित वो मूर्ति हो
मेरे बहुरंगी स्वप्नों की
तुम ही इच्छित पूर्ति हो
जब भी घोर निराशा छाए
देती तुम्हीं मुझे दिलासा

तुम्हें समर्पित मेरा जीवन
अर्पण तुमको ही हर आशा

अस्तित्व मेरा सुवासित जिससे
तुम हो वो दिव्य प्राजक्ता
जल की शीतलता हो तुम ही
तुम्हीं अनल की हो दाहक्ता
मेरे वृहद् प्रेम-ग्रंथ की
संक्षिप्त, तार्किक तुम मीमांसा

तुम्हें समर्पित मेरा जीवन
अर्पण तुमको ही हर आशा

तेरे शब्दालंकारों से
रचता रहूँ मैं गीत-छंद
तेरे सहचर्य से रमणी
मिट गए सारे द्विधा-द्वंद
सिमट गई तुझमें ही जैसे
संबंधों की हर परिभाषा

तुम्हें समर्पित मेरा जीवन
अर्पण तुमको ही हर आशा

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]