गुरू दक्षिणा कैसे चुकाऊँ
गुरू तुम्हारे प्यार का उपकार मैं कैसे चुकाऊँ |
ज्ञान के अनमोल धन का मोल मैं कैसे चुकाऊँ |
गुरु तुम्हारे – – – – – –
आपने लिखना सिखाया आपने पढ़ना सिखाया ,
ज़िन्दगी के रास्ते हर मोड़ पे चलना सिखाया |
आपके उपकार का यह ऋण भला कैसे चुकाऊँ |
गुरु तुम्हारे- – – – — –
क्या सही है क्या गलत है आपने हमको बताया |
झूँठ क्या है ? सत्य क्याहै ? भेद दोनो का बताया |
आपकी अनुपम कृपा का भार मैं कैसे चुकाऊँ |
गुरु तुम्हारे- – – – – – –
दीप हो तुम ज्ञान का मन का तमस तुमने मिटाया |
हर अंधेरा दूर करके राह को रौशन कराया |
प्रीत के उपहार की गुरु दक्षिणा कैसे चुकाऊँ |
गुरु तुम्हारे- – – – – – – –
बस बताये मार्ग पर तेरे चलूँ ऐसी कृपा हो |
सत्य पथ का अनुसरण हो कर्म में रत साधना हो |
आज फिर आशीष देदो मैं सफल जीवन बिताऊँ |
गुरु तुम्हारे- – – – – – – –
लाख आयें मुश्किलें मेरे कदम न लडखडाये |
चीर कर अंधियार को सुंदर सुनहरा प्रात लायें |
कोटि वंदनव ‘मृदुल’ स्वर आराधना के गीत गाऊँ |
गुरु तुम्हारे- – – – – – – — –
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल “
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )