बेटियाँ
खो रहीं मधुरिम सरसती बोलियाँ
अश्क आँखों में सिसकती बेटियाँ
दर्द सहती उफ न करती ये सदा
बेटियाँ हैं दो कुलों की संधियाँ
वारती सर्वस्व अपना नेह वश
जीत कर भी हारती हैं बाजियाँ
भाई बेटों को चुभें ना शूल एक
ये मिटा देती हैं अपनी हस्तियाँ
ख्वाब बेटों के लिये है अनगिनत
बेटियों पर है गिराते बिजलियाँ
कोख में ही खत्म करते भ्रूण को
बच गयीं तो डालते हैं बेड़ियाँ
जश्न आजादी मनाते हर बरस-
रूढ़िवादी आजभी बैसाखियाँ
गर न सोंचागे विचारोगे अभी –
वक्त ना लेगा नकभी अंगड़ाइयाँ
बेटियाँ होंगी नहीं संसार मे –
क्या बजेंगी फिर यहाँ शहनाइयाँ
रूह तक अब दर्द से आबाद है –
अब तो तन्हा हो गयीं तन्हाईयाँ
— मंजूषा श्रीवास्तव