भविष्य
लक्ष्मी की जिंदगी दूसरों के ताने और अपमान सुनने में ही बीती थी। हिम्मत ही न थी कि अपना सुर ऊँचा कर अन्याय के खिलाफ दो शब्द बोल पाए । आज वही लक्ष्मी भरी बिरादरी में अपनी बेटी के पति को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए बोल रही थी – “एक तो उसकी कमाई खाते हो और उसी पर हाथ उठाते हो । मेरी बेटी किसी पर बोझ नहीं है । वो पढ़ी-लिखी और समझदार है । और हाँ…. उसकी माँ अभी जिन्दा है । वह मेरे साथ रहेगी।” इतना कह बेटी का हाथ पकड़ वह उसे घर ले आई।
जो कदम उसकी माँ नहीं उठा पाई थी, आज वह कदम उठा उसने, अपनी बेटी का भविष्य नरकीय होने से बचा लिया था।
अंजु गुप्ता