इस युग की कहानी…
गांधी की अहिंसा शास्त्री की सरलता
किताबों में रह गई है सिर्फ कहानी
राजा और प्रजा भटके हैं दोंनो
कर रहे हैं अपनी-अपनी मनमानी
स्वार्थ है हावी राष्ट्र को है हानी
झूठ-प्रपंच को सबने राजनीति मानी
यहाँ योग्य सड़कों पर भटकते मिलेंगे
अयोग्यता बनी रानी मिले राजधानी
व्यभिचार बढ़ा है इतिहास गढ़ा है
नहीं रहा अब हमारी आँखों में पानी
फूट में लूट धन किया अकूत
मिले चाहे कैसे भी कुर्सी सुहानी
रिसते हैं लड्डू और जमता है पानी
यही है जुवानी इस युग की कहानी
— व्यग्र पाण्डे