टूट गई दीवारें !
टूट गई दीवारें
अब सब दिखता है
गरीबी की अपनी देखो
हर कोई कहानी लिखता है।
कल तक परदे में था
अब सब सामने दिखता है
इक आम इंसान जब
तड़प कर भूख से मरता है।
न राशन बचा रसोईघर में
पर कौन नेता ये समझता है
वक्त़ क्या मरहम लगाएगा
दिल न किसी का पिघलता है।
टूट गई दीवारें
मजबूरी का तमाशा बनता है
आंसुओं को कैसे रोकूं यारों
जब दिल का जख्म रिसता है।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !