कविता

टूट गई दीवारें !

टूट गई दीवारें
अब सब दिखता है
गरीबी की अपनी देखो
हर कोई कहानी लिखता है।

कल तक परदे में था
अब सब सामने दिखता है
इक आम इंसान जब
तड़प कर भूख से मरता है।

न राशन बचा रसोईघर में
पर कौन नेता ये समझता है
वक्त़ क्या मरहम लगाएगा
दिल न किसी का पिघलता है।

टूट गई दीवारें
मजबूरी का तमाशा बनता है
आंसुओं को कैसे रोकूं यारों
जब दिल का जख्म रिसता है।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |