नारी
नारी ममता माया कस बल ,
यह बात भुलाओगे कैसे
नारी सृष्टि की ध्रुआ शक्ति ,
यह बात भुलाओगे कैसे |
तन मन धन से अर्पित हो जो ,
तुममें साहस जाग्रत करती,
अपना सर्वस्व लुटा कर जो ,
तुममे नित नव ऊर्जा भरती |
उस त्याग मूर्ति नारी का तुम ,
उपकार भुलाओगे कैसे |
नारी ममता – – – – – – – –
स्नेह सुधा पी कर जिसका ,
सारा जग देखो पलता है |
शिशु बन कर जिसकी गोदी में ,
दिन रात मचलता रहता है |
निज पिला रक्त पोषण करती ,
भरती है अपना मधुर प्राण |
दुःख दर्द भरे तापों को सह ,
देती है सबको वही त्राण |
बोलो इन अनुदानों का तुम,
प्रतिदान चुकाओगे कैसे |
नारी ममता – – – – – – — –
महिमा गरिमा से नारी की ,
गौरव का अनुभव करते हैं |
इसकी हर एक दृष्टि से ही ,
अध्याय बदलते रहते हैं |
थक कर भय से हारा-हारा ,
मानव जब राह न पाता है |
जाग्रत करती साहस भरती,
प्रेरणा प्राणमय पाता है |
हो उसके आँचल की छाया ,
बाधाएँ तृण बन जाती हैं |
यह सदा सर्वदा कल्याणी ,
है यही पूर्णता जीवन की |
नारी की महिमा का रहस्य ,
बोलो तुम समझोगे कैसे |
नारी ममता – – – – – – – – –
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )