गज़ल
मेरी तरह जो किसी बेवफा से तुम दिल को लगाओगे
तुम भी तड़पोगे यूँ ही और तुम भी बहुत पछताओगे
राह – ए – मुहब्बत पे चलना है काम बड़े जांबाजों का
ओ डर-डर के जीने वालो तुम क्या साथ निभाओगे
बेहतर है जो बीत गया हो उसको भूल ही जाओ तुम
करके याद उन बातों को अब कब तक अश्क बहाओगे
छोड़ के मुझको हाथ गैर का थाम तो लोगे तुम लेकिन
किसी के ख्वाबों के खंडहर पे कैसे महल बनाओगे
सजी हुई है महफिल सारी अभी कहां फुर्सत तुमको
तब तुम समझोगे मुझको जब खुद तनहा रह जाओगे
— भरत मल्होत्रा