रिश्ते
” रिश्ते ”
जैसे सर्द की सुबह
सूर्य की उंजली किरणें
तन-मन को छू कर
गर्माहट की एक
सुखद अनुभूति देती है ।
जैसे पुष्प की सुगंध
हवाओं के संग
घुलकर सांसों में
रोम-रोम में समा कर
मन को रोमांचित कर जाती है ।
जैसे दूर क्षितिज पर
डूबते सूर्य की रक्तिम आभा
आंखों को सहलाकर
अंर्तमन को
आह्लादित कर देती है ।
जैसे पुष्प की सुगंध को ,
सूर्य की किरणों को ,
बांध नहीं सकते
बंधन में ।
वैसे ही रिश्तों की
सुखद अनुभूति को ,
पिरो नहीं सकते
शब्दों की माला में ।
केवल एक
एहसास बनकर
समा जाती है,
मन की गहराइयों में ।
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना