कविता

रिश्ते

” रिश्ते ”

जैसे सर्द की सुबह
सूर्य की उंजली किरणें
तन-मन को छू कर
गर्माहट की एक
सुखद अनुभूति देती है ।

जैसे पुष्प की सुगंध
हवाओं के संग
घुलकर सांसों में
रोम-रोम में समा कर
मन को रोमांचित कर जाती है ।

जैसे दूर क्षितिज पर
डूबते सूर्य की रक्तिम आभा
आंखों को सहलाकर
अंर्तमन को
आह्लादित कर देती है ।

जैसे पुष्प की सुगंध को ,
सूर्य की किरणों को ,
बांध नहीं सकते
बंधन में ।

वैसे ही रिश्तों की
सुखद अनुभूति को ,
पिरो नहीं सकते
शब्दों की माला में ।

केवल एक
एहसास बनकर
समा जाती है,
मन की गहराइयों में ।

ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]