ग़म की मंजिल…
मैं न जाने कहाँ खो गया हूँ
मैं खुद में खुद को खोज रहा हूँ
पर मिलना है बहुत ही मुश्किल
क्योंकि में अजनवी हो गया हूँ
नहीं पता मुझे खुशी और ग़म
मैं तो अब आवारा हो गया हूँ
साथी है न कोई दुश्मन है
मैं तो अब बंजारा हो गया हूँ
सोच रहा हूँ कि इस दुनियां में
मैं कहाँ से कहाँ आ गया हूँ
जा रहा था मैं प्यार लुटाने
पर ग़म की मंजिल पा गया हूँ
– रमाकान्त पटेल