सामाजिक

अबोध शिशुओं पर पड़ता शिक्षा का बोझ

आज दिल्ली के रामजस पब्लिक स्कूल के कुछ अभिभावकों से बातचीत हुई। जिससे आज के चार साल के बच्चों की शिक्षा की स्थिति ज्ञात हुई। आज इन स्कूलों ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। स्वयं शिक्षा के नाम पर नाममात्र का देते हैं और दस पेज का गृहकार्य देते हैं।
प्रतिस्पर्धा के दौर में बचपन बोझ तले दबा है। जितने वजन के बच्चे हैं, उनके बस्ते का वजन उससे अधिक है। हर अभिभावक अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देकर सुनहरा भविष्य बनाना चाहता है। निजी विद्यालयों की तड़क-भड़क को देखकर अभिभावक भी बच्चों का दाखिला निजी विद्यालयों में करा रहे हैं। परिणाम यह है कि बेहतर शिक्षा का प्रदर्शन करने के नाम पर निजी स्कूल कई नए विषयों को जोड़ते हैं। इसके चलते उनके बस्ते का बोझ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बस्ते के भारी बोझ के चलते बच्चों की रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो रही है तथा पीठ से कमर तक के हिस्से में झुकाव हो रहा है। बेहतर शिक्षा के नाम पर बस्ते के बढ़ रहे बोझ से बच्चों का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है।
बच्चों की दिनचर्या शुरू होती है भागदौड़ भरी जिंदगी से। अल सुबह उठना, तैयार होना और चल देना स्कूल की ओर। दिनभर की पढ़ाई के बाद थक-हारकर दोपहर बाद घर लौटना। यहां आते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है, लेकिन यह ज्यादा देर नहीं टिकती। अभिभावक कुछ ही देर में उनका बैग खोलकर कहते हैं- चलो होमवर्क करो। बच्चे को मन मारकर होमवर्क पूरा करना ही पड़ता है। जब सांझ ढलने लगती है तो उसे लगता है अब तो खेलने-कूदने को मिलेगा, लेकिन इतने में ही ट्यूशन का समय हो जाता है। यहां से लौटते ही खाना खाने और फिर सोने का वक्त हो जाता है। बच्चों का उन्मुक्त मन कोई अठखेली करने को करता है तो उसे डांट मिलजी है- चलो सो जाओ, सुबह स्कूल जाने के लिए जल्दी उठना है। इस दिनचर्या में आपको कहीं बचपन दिखाई देता है?
आज बच्चे अपने बचपन को ढूंढ रहे हैं। हंसने-खेलने की उम्र में बच्चे किताबों का बोझ ढोह रहे हैं। लगभग पांच दशक पहले पहली से पांचवीं कक्षा के विद्यार्थियों पर इतना बोझ नहीं था। मसलन पहली कक्षा के लिए एक किताब और दूसरी के लिए दो और तीसरी के लिए तीन और चौथी, पांचवीं के लिए चार किताबें होती थीं। शिक्षा के निजीकरण से और कोई फायदा हुआ हो या नहीं, लेकिन किताबों की संख्या जरूर बढ़ गई है। पहली कक्षा में ही बच्चों को छह पाठ्य पुस्तक पढ़नी पड़ती हैं।
बस्तों के भारी वजन, कठिन सिलेबस और अत्यधिक होमवर्क के चलते खासी बड़ी संख्या में बच्चों की आंखें कमजोर हो गई हैं।उनके सिर में दर्द रहने लगा है। उंगलियां टेढ़ी होने की भी शिकायतें हैं। आलम यह है कि बच्चे सपने में भी परियों के दृश्य देखने के बजाय होमवर्क बुदबुदाते हैं।
बाल मनोविज्ञान से जुड़े अध्ययन भी बताते हैं कि चार साल से लेकर बारह साल की उम्र तक बच्चों के व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास होता है। इस दौरान उन्हें किताबी ज्ञान के बजाय भावनात्मक सहारे की ज्यादा जरूरत होती है।
बच्चों को ‘जीने’ का अधिकार दें, उनके दोस्त बनें।उन्हें नंबर छापने मशीन न बनाएं।
निशा नंदिनी

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]