आत्मविश्वास
लघु कथा
” आत्माविश्वास ”
आज भी सुबह सैर करने निकली तो मन आनंदित तथा ऊर्जावान था। भोर के सूर्योदय एवं उसकी रक्तिम आभा सदा ही मेरा मन मोह लेता है। भोर की शुरुआत अब तो सैर से करना आदत सी बन गई है।
हमारे घर के पास ही एक ऊंची पांच मंजिली इमारत है, यू कहिए कि एक शॉपिंग मॉल है। नीचे दुकाने तथा तीसरी मंजिल पर एक कॉल सेंटर है जहां बहुत से लड़के तथा लड़कियां काम करती हैं।
प्रत्येक दिन लौटते समय मैं उसी इमारत के सामने से गुजरती हूं। और….. आज भी ऐसा ही हुआ।
आज मैं ठिठककर रुक गई, जब मैंने देखा एक जवान अपंग लड़का तीसरी मंजिल की सिढ़यों से रेंगते हुए उतर रहा था। वह खड़ा नहीं हो पाता। उसने अपने दोनों हाथों में एक तरह के बने हुए जूते पहन रखें थे। नीचे उसकी तीन पहियों वाली स्कूटर खड़ी दिख रही थी। वह उसी के पास आ रहा था।
वह बड़ी कुशलता के साथ गाड़ी में बैठा और गाड़ी स्टार्ट कर फर्राटे से निकल गया। उसके आत्मविश्वास को देख कर मैं अचंभित रह गई। हम तो थोड़ी-थोड़ी बातों में रोते बिलखते रहते हैं। आज मैंने उस लड़के से यह सीखा कि जीवन में जैसी भी परिस्थिति आए उसका सामना डटकर करना चाहिए।
उसे जाते हुए खड़ी मैं देखती रह गई। मैंने मन ही मन कहा…”तुम्हारे आत्मविश्वास को सलाम बेटा……!”
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।