निराला बचपन
” निराला बचपन ”
बचपन की वो शरारतें
वो पहली बारिश में भीगना,
मिट्टी की सोंधी सोंधी सुगंध
उष्ण तन- मन को शीतल करना ।
मन ना माने कोई बंधन आज
माटी घुले पानी में डुबकी लगाना,
संगी- साथियों के संग मिलकर
कीचड़ में लथपथ हो जाना ।
देख मेरी वह मोहिनी मूरत
आंखों से मां की, क्रोध छलकना,
ह्रदय कांप उठता था मेरा
कठिन है आज पिटाई से बचना ।
बीच में आ जाते थे बापू
मां को समझाने का प्रयास करते,
बचपन आता है एक बार
ये मस्ती के दिन बार-बार नहीं आते।
बीमार हुई तो कौन संभालेगा
खीझकर मां बापू से कहती ,
मन में स्नेह की धार बहती
बाहर से क्रोध का नाटक करती।
जाने क्या है भविष्य के गर्भ में
मस्ती में गुजरने दो बचपन ,
उड़ने दो पंख फैलाकर आकाश में
बांधो ना इसके पैरों में बंधन ।
भान है तुम्हें भी इस बात का
होते हैं जीवन में कितने उलझन,
ये समय है सबसे अनमोल
सबसे प्यारा-” निराला बचपन” ।
कहां खो गए वह सुनहरे दिन
वो प्यार,वो झिड़की, वो दुलार,
जीवन के ये वय भाए ना मुझको
काश! लौट के आता बचपन एक बार।
पूर्णतः स्वरचित- जोशना पाॅल ।