बाल कविता

निराला बचपन

” निराला बचपन ”

बचपन की वो शरारतें
वो पहली बारिश में भीगना,
मिट्टी की सोंधी सोंधी सुगंध
उष्ण तन- मन को शीतल करना ।

मन ना माने कोई बंधन आज
माटी घुले पानी में डुबकी लगाना,
संगी- साथियों के संग मिलकर
कीचड़ में लथपथ हो जाना ।

देख मेरी वह मोहिनी मूरत
आंखों से मां की, क्रोध छलकना,
ह्रदय कांप उठता था मेरा
कठिन है आज पिटाई से बचना ।

बीच में आ जाते थे बापू
मां को समझाने का प्रयास करते,
बचपन आता है एक बार
ये मस्ती के दिन बार-बार नहीं आते।

बीमार हुई तो कौन संभालेगा
खीझकर मां बापू से कहती ,
मन में स्नेह की धार बहती
बाहर से क्रोध का नाटक करती।

जाने क्या है भविष्य के गर्भ में
मस्ती में गुजरने दो बचपन ,
उड़ने दो पंख फैलाकर आकाश में
बांधो ना इसके पैरों में बंधन ।

भान है तुम्हें भी इस बात का
होते हैं जीवन में कितने उलझन,
ये समय है सबसे अनमोल
सबसे प्यारा-” निराला बचपन” ।

कहां खो गए वह सुनहरे दिन
वो प्यार,वो झिड़की, वो दुलार,
जीवन के ये वय भाए ना मुझको
काश! लौट के आता बचपन एक बार।

पूर्णतः स्वरचित- जोशना पाॅल ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]