मेनका — Me too
Me too अभियान की सफलता से प्रोत्साहित स्वर्ग की अप्सरा मेनका ने भी ब्रह्मर्षि विश्वमित्र के खिलाफ सीधे भारत के सुप्रीम कोर्ट में यौन उत्पीड़न का मामला दायर किया। चूंकि मामला हाई प्रोफ़ाइल था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। मेनका के समर्थन में प्रशान्त भूषण, इन्दिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंहवी ने आधी फ़ीस में ही मुकदमा लड़ने के लिए अपनी सहमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की सलाह पर इस सुनवाई के लिए जस्टिस एक्स.जेड भरभूड़ को दायित्व दिया। विश्वमित्र ने पूरे भारत का भ्रमण किया, लेकिन उन्हें कोई योग्य वकील नहीं मिला। विश्वमित्र एक तो आर्यावर्त्त में पैदा हुए थे, दूसरे पुरुष जाति से संबन्ध रखते थे और तीसरे वे सवर्ण (क्षत्रिय समुदाय) थे, अतः भारत के संविधान और कानून के अनुसार उनके अधिकार नगण्य थे। फिर भी उन्होंने प्रयास जारी रखा। राजस्थान की करणी सेना ने उनका साथ दिया और जिला स्तर के एक वकील को उनके साथ लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सम्मन जारी किया जा चुका था। लिहाज़ा निर्धारित तारीख पर अपने झोला छाप वकील के साथ विश्वमित्र कोर्ट में पहुँचे। वहां वकीलों की भारी भरकम फौज के साथ मेनका पहले से ही उपस्थित थी। विश्वमित्र की ओर वह कुटिल मुस्कान फेंक रही थी। जस्टिस भरभूड़ निर्धारित समय से एक घंटे की देरी से अदालत पहुंचे। सबने खड़े होकर उनका स्वागत किया। उन्होंने एक विहंगम दृष्टि कोर्ट में उपस्थित लोगों पर डाली। मेनका के अलौकिक सौनदर्य, समयानुकूल अद्भुत मेकअप, और अन्तर्लोकीय perfume से वे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अचानक उनकी दृष्टि लंगोट पहने ब्रह्मर्षि विश्वमित्र पर पड़ी। उन्होंने विश्वमित्र को कोर्ट से बाहर निकल जाने का आदेश दिया और शीघ्र ही कोर्ट के ड्रेस कोड के अनुसार कपड़े पहनकर आने की हिदायत दी। बिचारे विश्वमित्र बाहर आये। कुछ दयालू लोगों ने उनकी मदद की और वे एक पैंट, एक शर्ट और एक टाई खरीदने में सफल हो गए। जज साहब उन्हें ड्रेस कोड के अनुसार कपड़े पहने देखकर प्रसन्न हुए। विश्वमित्र अपराधी के कटघरे में खड़े हो गए। कोर्ट की कार्यवाही आरंभ हुई। मेनका ने जज साहब से यह जानना चाहा कि सुनवाई की Live telecast की व्यवस्था है या नहीं? जज साहब ने बताया कि Live telecast की व्यवस्था के लिए आदेश कर दिए गए हैं, परन्तु अभी ठेकदार ने काम पूरा नहीं किया है। मेनका और उसके वकील तमतमा गए। मेनका ने कहा कि जबतक Live telecast की व्यवस्था नहीं होती, वह कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती। जज साहब ने बताया कि एक सप्ताह में Live telecast की व्यवस्था हो जाएगी। सुनवाई अगले हफ़्ते के लिए टाल दी गई। मेनका ने अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा बुक कराए गए एक पंच सितारा होटल में रहकर दिल्ली के प्रसिद्ध माल में खरीददारी की और बुद्धा गार्डेन में घूमकर अपना समय बिताया। इस बीच कई न्यूज चैनल के कई पत्रकारों ने उसका इन्टर्व्यू लिया, चैनल पर डिबेट किया और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के पहले ही महर्षि विश्वमित्र के खिलाफ अपने-अपने निर्णय सुना दिए। उधर विश्वमित्र राजघाट, बिरला मन्दिर और लोटस टेंपल के चक्कर लगाते रहे। समय से वे शीशगंज गुरुद्वारे में पहुंच जाते और लंगर में भोजन करके भूख मिटाते। वे लोगों से बचकर रहते। टीवी चैनल वालों ने उनके खिलाफ ऐसा महौल बना दिया था कि कहीं भी उनके साथ माब लिंचिंग हो सकती थी।
खैर जैसे-तैसे एक हफ़्ते का समय बीत गया। आरोपी और प्रत्यारोपी अपने-अपने वकीलों के साथ कोर्ट में पहुंचे। जज साहब हमेशा की तरह मात्र एक घंटे विलंब से आये। मेनका को देख उनका हृदय हर्षित हो उठा। उन्होंने आते ही बताया कि Live telecast की व्यवस्था हो गई है। हर्षित दर्शकों और मेनका ने तालियां बजाई। जज साहब ने मेज पर हथौड़ा ठोका और कहा — silence, silence, please. सब शान्त हो गए। कार्यवाही आरंभ हो गई। जज साहब ने मेनका से अपने ऊपर हुए यौन उत्पीड़न को विस्तार से बताने का अनुरोध किया। मेनका ने कहना शुरु किया —
“मी लार्ड! यह विश्वमित्र एक नंबर का व्यभिचारी, झूठा और बेवफ़ा है। एक बार सत्ययुग के अन्त में या त्रेता युग के प्रारंभ में (ठीक समय याद नहीं है) मैं पृथ्वी पर विचरण कर रही थी। घूमते-घूमते मैं एक जंगल में गई जहां ये तथाकथित महर्षि तपस्या कर रहे थे। वहां के प्राकृतिक अति सुन्दर दृश्य को देखकर मैं नृत्य करने लगी, तभी इस महर्षि ने मुझे देखा। बड़ी देरतक घूरने के बाद ये सज्जन मेरे पास आये और बिना विलंब किए प्रणय निवेदन कर दिया। जंगल में उस समय मैं अकेली थी। मेरा कोई सहायक नही था, अतः मैंने मज़बूरी में इनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इनके साथ मैं एक वर्ष तक रही, एक पुत्री की माँ भी बनी। जैसे ही इन्हें यह पता लगा कि मैं माँ बन गई हूँ और मैं इन्द्रलोक की अप्सरा हूं, ये आग बबूला हो गए और तत्काल मुझे पृथ्वी से ही निष्कासित कर दिया। यही नहीं इन्होंने मेरी नवजात कन्या को भी अपनाने से इंकार कर दिया। मुझे अपनी अबोध नवजात कन्या को महर्षि कण्व के आश्रम के पास अकेला बेसहारा छोड़कर स्वर्गलोक में इन्द्र के पास जाना पड़ा। विश्वमित्र ने मेरा भयंकर यौन शोषण किया और घर से निष्कासित भी कर दिया। मैं आपसे न्याय की गुहार करती हूं।”
मेनका के वकीलों ने मेनका का समर्थन करते हुए जज साहब को इंडियन पेनल कोड की विभिन्न धाराओं का ज्ञान देते हुए विश्वमित्र के लिए फांसी की सज़ा की मांग की।
जज साहब ने विश्वमित्र को अपना पक्ष रखने का आदेश दिया। विश्वमित्र सिर झुकाए अपराधी की तरह कटघरे में खड़े थे। उनका वकील अंग्रेजी में बहस करने में अक्षम था, अतः विश्वमित्र ने स्वयं अपना पक्ष रखा —
“मी लार्ड! मेनका ने मेरे साथ गंधर्व विवाह किया था, इसलिए उसके साथ मैंने वही व्यवहार किया जो एक पति से अपेक्षित है। मैंने कोई यौन शोषण नहीं किया है। मैं महर्षि से ब्रह्मर्षि बनने के लिए घोर तपस्या में रत था। ईर्ष्यालू इन्द्र के निर्देश पर यह सुन्दरी मेरी तपस्या को भंग करने के लिए मेरे पास आई और तरह-तरह से मुझे अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगी। मुझे यह पता नहीं लगा कि यह एक षडयंत्र के तहत मेरी तपस्या को भंग करने के लिए मेरे पास आई थी। अपने अभियान में यह सफल भी हो गई। लेकिन जब मुझे षडयंत्र का पूरा व्योरा पता लग गया कि मैं Honey trap में फंसाया गया हूं, तो मैंने इसका परित्याग कर दिया। मैंने कोई अपराध नहीं किया है बल्कि अपराध मेनका ने किया है। इसने मुझे धोखा दिया है और मेरी वर्षों की तपस्या भंग की है। श्रीमान जी मुझे न्याय मिलना चाहिए।”
मेनका के वकीलों ने विश्वमित्र के कथन का जोरदार विरोध किया और घंटों अंग्रेजी में बहस करते रहे। अन्त में विद्वान जज ने अपना फैसला सुनाया —
“वादी और प्रतिवादी के वक्तव्य और सम्मानित वकीलों के तर्कों को ध्यान से सुनने के बाद अदालत इस निष्कर्स पर पहुंचती है कि ब्रह्मर्षि विश्वमित्र यौन शोषण के अपराधी हैं। उन्होंने एक अबला सुन्दरी का अपनी इच्छा के अनुसार तबतक यौन शोषण किया, जबतक उनकी इच्छा थी। मन भरते ही इन्होंने एक नारी का उस अवस्था में परित्याग किया जब वह अभी-अभी माँ बनी थी। इनका यह कृत्य जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता है, अतः इन्हें प्राप्त राजर्षि, महर्षि और ब्रह्मर्षि आदि उपाधियों से इन्हें वंचित किया जाता है तथा इन्हें कलियुग में सात बार, सत्ययुग में छः बार, त्रेता में पांच बार और द्वापर में चार बार फांसी पर लटकाने की सज़ा सुनाई जाती है। इनकी बिरादरी के अन्य साधु-सन्तों को भी जो दाढ़ी बढ़ाकर गुरु बने बैठे हैं आजीवन कारावास की सजा दी जाती है तथा वकील और कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी को छोड़कर संपूर्ण पुरुष जाति से औरतों की ओर देखने का अधिकार वापस लिया जाता है।”
ब्रह्मर्षि विश्वमित्र चूंकि क्षत्रिय समाज से आते थे, इसलिए सभी क्षत्रियों ने करणी सेना के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशव्यापी बन्द का आह्वान किया जिसमें एक हजार बसें जलाई गईं, ५०० कि.मी. रेल लाईन उखाड़ी गई, लाखों दुकानों में आग लगाई गई, लक्ष-लक्ष लोगों की हत्या की गई और सारे हाई वे पर जाम लगाया गया।
करणी सेना ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है और केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटने के लिए अध्यादेश लाये। अन्यथा की स्थिति में वे १९१९ के चुनाव में नोटा का बटन दबायेंगे या ब्रह्मचारी पप्पू की पार्टी को वोट देंगे।
बहुत बढ़िया mee- too . हार्दिक बधाई. मगर, पहले पैरा बहुत ज्यादा लम्बा लग रहा है.