कविता

कुछ ख्वाहिशें अबुझी सी……..

कुछ ख्वाहिशें अबुझी सी
कस कर बंधी मुठ्ठी से
फिसलती रेत- सी क्यूं हैं???

छलकने की भी इजाजत
है नहीं जिनको, वो बनकर
अश्क की बूंदें ढलक जाती- सी क्यूं हैं???

चाहते हैं जिन लम्हों
को हम रोक कर रखना
वो दुगुनी वेग भागती- सी क्यूं हैं???

जिन्हें सौंपा है खुद को,
खोकर अपनी खुदी को
वो ही हमें बेखुदी में ढकेल जाती- सी क्यूं हैं???

खुशियां आती नहीं हैं रास
न जाने पीड़ाओं में जीने को
अपनी हर खुशी अभिशापित- सी क्यूं हैं???

सबको ख़ुशी देने की चाहत
कब बन गई एक बुरी आदत
समझ में कुछ नहीं आता आखिर
ये आदत इतनी रूलाती- सी क्यूं हैं???

कविता सिंह

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : samikshacoaching@gmail.com