बाल कविता

चुन्नू मुन्नू

नन्हे मुन्ने बच्चों को समर्पित…….

” चुन्नू मुन्नू”

आओ खेलें चुन्नू मुन्नू
मिलकर सब कोई खेल,
बातें करें एक दूजे से
बढ़ाएं आपस में मेल।

बनाए स्वयं को तंदुरुस्त
होगा बलशाली हमारा तन,
खूब हंसे संग मिलजुलकर
होगा प्रफुल्लित सबका मन।

पढ़ें मित्रता का पाठ हम
बढ़ाएं आपस में प्यार,
सीखें मिल जुल कर रहना
और बड़ों से करना व्यवहार।

झगड़े ना एक दूजे से
करे ना किसी से लड़ाई,
मिल बांट कर खाए सब कुछ
करेंगे माता पिता हमारी बड़ाई।

आंखों के लिए अच्छा नहीं
होता, देखना टी वी दिन भर ,
आओ बताएं सबको यह बात
चढ़ाओ ना ऐनक आंखों पर।

बतला दे जग‌ को यह बात
हम बच्चे नहीं किसी से कम,
कुछ बनकर दिखला देंगे
हम सब में है इतना दम।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]