ग़ज़ल – सायबान
ऐ जिंदगी कुछ यूं गुज़र के खुद को और तराश दे
है दर्द से भीगी हुई कोई सायबान तलाश दे।
तू रुख ज़माने का समझ के,देख दुनियां की सब़ा
सूरत पे सब होते फ़िदा, सीरत को कोई न आश दे
अभी रंग है उधड़ा हुआ,कुछ रुप में है सादगी,
ज़रारुप को दे रौशनी,और रंग शोख़ ए पलाश दे।
न आरजू शोहरत की है,न तमन्ना कोई उड़ान की
बस हौसला इतना रहे,के हयात को न हताश दे।
रब से दुआएं हैं यही ,अल्ताफ़ की बरसात में,
हरसू फ़कत ये प्यार हो नहीं नफ़रतों की ख़राश दे
— पुष्पा “स्वाती”