“कुंडलिया”
भावन अदा लिए हुए, लाल शुभ्र प्रिय रंग
पारिजात कैलाश में, रहता शिव के संग
रहता शिव के संग, भंग की चाह निराली
जटा सुशोभित गंग, ढंग महिमा श्री काली
कह गौतम कविराय, निवास पार्वती पावन
नमन करूँ दिन-रात, आरती शिव मनभावन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी