मुक्तक/दोहा

नारी

नारी घर संसार है, नारी है आधार|
नारी पर क्यों हो रहा, फिर -फिर अत्याचार||

आदि शक्ति संजीवनी, जग की मूलाधार|
स्वयं तरसती प्रीत को, बहती बन रसधार||

मासूमों को नोचते, करते नित संहार|
स्वांग रचा नवरात्रि में, कन्या पाँव पखार||

निर्ममता से लूटते, असमत जो हैवान|
कर इनका संहार अब,बढा धरा का मान||

कली फूल न बन सके, छाये कहाँ बहार|
नित्य भ्रूण हत्या करे, क्या पनपे संसार||

मंगल ममता मूर्ति का, सदा करो सम्मान|
उन्नति हो अवनति मिटे, सदा होय कल्याण||

‘मृदुल’ सरलता उर बसे, ऐसा करो प्रयास|
हे मनु की संतान सुन, फैला नवल उजास||

मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016