नारी
नारी घर संसार है, नारी है आधार|
नारी पर क्यों हो रहा, फिर -फिर अत्याचार||
आदि शक्ति संजीवनी, जग की मूलाधार|
स्वयं तरसती प्रीत को, बहती बन रसधार||
मासूमों को नोचते, करते नित संहार|
स्वांग रचा नवरात्रि में, कन्या पाँव पखार||
निर्ममता से लूटते, असमत जो हैवान|
कर इनका संहार अब,बढा धरा का मान||
कली फूल न बन सके, छाये कहाँ बहार|
नित्य भ्रूण हत्या करे, क्या पनपे संसार||
मंगल ममता मूर्ति का, सदा करो सम्मान|
उन्नति हो अवनति मिटे, सदा होय कल्याण||
‘मृदुल’ सरलता उर बसे, ऐसा करो प्रयास|
हे मनु की संतान सुन, फैला नवल उजास||
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )