कविता

जीवन का पथ

‘जीवन का पथ’ बहुत लंबा है बंधु
चलते चलते आते हैं इसमें कई मोड़,
चलना तो पड़ेगा तुझको फिर भी
विघ्नों और बांधाओं को तोड़।

जो डर गया तू , जो रुक गया तू
कैसे मिलेगी तुझको फिर मंजिल,
टकराएगा उद्धत लहरों से जब तू
तभी मिल पाएगा तुझको साहिल।

उफनती नदी को देखकर मांझी
पल भर के लिए ठहर जो गया,
पार न लग पाएगी कश्ती तेरी
बीच भंवर डूब जाएगी नैया ।

भवसागर बीच खा रही हिचकोले
आज अगर जो तेरी जीवन नैया,
कसकर पकड़ ले पतवार मांझी
तू है बड़ा निडर , निपुण खेवैया।

आज अगर है ऊंची ऊंची लहरें
कल ना होगी ऐसी, किसे खबर,
कल और भी ऊंची उठ सकती है
पतवार को पकड़ना तब कसकर।

आज ही लगाना है नैया को पार
जीवट है तू, तुझ में है बहुत दम,
जलाले साहस-दीप अपने भीतर
समझ ना स्वयं को किसी से कम।

चूभे अगर तेरे पग में कंटक
बहे घाव से अगर रक्त की धार,
बढ़ना है मंजिल की ओर फिर भी
निडर तू मान नहीं सकता हार ।

कांटों के बीच चल कर तुझे फिर
मिल जाएगी फूलों की नगर,
मनचाहा जीवन साथी के संग
कट जाएगी जीवन की लंबी डगर।

शांति के झूले में झूलेगा एक दिन
पहुंचेगा जब तू एक दिन उस पार,
मिलेगा तुझे उस दिन प्रेम असीम
रखकर सिर प्रियतम के कांधे पर।

सहला जाएगा तन – मन को तेरे
सागर की सुंदर, शीतल बयार,
आह्लदित हो नाच उठेगा‌ मन तब
पाकर अपने प्रियतम का असीम प्यार।

पूर्णतः मौलिक – ज्योत्सना पॉल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]