ग़ज़ल – मैं क्यों नही बदला
बदलाव का है दौर मै क्यों नही बदला।
है दूर तलक शोर मै क्यों नही बदला।
जाहिद मुरीद और हबीब कुछ रकीबों ने।
कितना लगाया ज़ोर मै क्यों नही बदला।
हसरतें बेज़रियां लाचारियां हालात।
देखें मेरी ही ओर मै क्यों नही बदला।
आकाश से सागर से करे होड़ ज़माना,
रही मेरी खुद से होड़ मै क्यों नही बदला।
उतार चढावों से भरी पूरी ज़िंदगी।
अंधे भी आये मोड़ मै क्यों नही बदला।
जिनके सहारे जीतता हर जंग मै ‘लहर’।
वो डोर थी कमज़ोर मै क्यों नही बदला।