कविता

सौभाग्य चिन्ह…..

सुनो ना!
क्या कहते हैं तुमसे
मेरे सौभाग्य चिन्ह…..
मेरे मांग का दमकता
सिंदूर कुछ कहे है,
क्या कहे है ?..
कि, नित छूओ
तुम नये सोपान।
मेरे माथे पर
सुशोभित बिंदिया
क्या बोले है?
ये बोले है…
कि,आओ समेट लूं
खुद में तुम्हारे
चेहरे की हर शिकन।
मेरे गले में झूमती
ये काली मंगल – मोतियां
भी कुछ गुनगुनाती हैं,
कि आओ ना
हम पिरों लें अपने
सभी दुःख और सुख।
हथेली की सुर्ख
मेंहदी की सुगंध
हवा में घुली
जताए है क्या?
नहीं समझे ना??
ये जताती हैं कि
कर्म-क्षेत्र के हर
उतार – चढ़ाव में
हर घड़ी तुम्हारे
साथ हैं खड़ी।
मेरी कलाई में
खनकती चूड़ियां
भी कुछ खनकाती हैं
कभी सुना है तुमने?
नहीं ना???
तो सुनो…
कहती हैं खनक,
मेरे ये गीत नहीं
होने देंगे तुम्हें
कभी भी उदास।
मेरी पायल की
रुनझुन की भी
सुन लो ना पुकार
छुन – छुन करती
मैं हूं हर पल
हर क्षण तेरे
कविता सिंह

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]