हम मनुज हैं
हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें।
डरे डूबे हुओं का किनारा बनें।
नर से नारायण बनकर हम सेवा करें।
दीन दुखियों के दुख को हम दूर करें।
जल बन कर मरुस्थल में बिखरते रहें।
उर में सबके ही हम प्रेम प्रीति भरें।
टकरा कर बाधाओं से फौलाद हम बनें।
हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें।
इस धरा के लिए इस गगन के लिए।
हम जिएँ हम मरें इस वतन के लिए।
इसकी माटी को चंदन सा महकाएँ हम।
इसके कण-कण को तारों सा चमकाएँ हम।
इस वतन पर सभी कुछ लुटाते चलें।
हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें।
तिलमिलाती है धरती पतन पाप से।
झुलस गए उपवन विषैली हवा से।
फैल रही दानवता मानवता की बेल से।
टूट रहे परिवार आधुनिकता के मेल से।
मिलजुल कर खुशियों के मेले रचें।
हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें।
— निशा नंदिनी