कविता

जीवन और कर्तव्य : मर्यादा

कहाँ गए वो आम बगीचे, वो बरगद की ऊँची शान |
कहाँ गए मर्यादित नर-नारी, कहाँ गई मानुष पहचान ||
आडम्बर की होड़ लगी है, सिर्फ दिखावा शान हुई |
मन -चित को हर लेनेवाली, वो मर्यादा कहाँ गई ||
जीवंत थी जो प्रकृति हमारी, जीवंत वो मुर्गे की बान |
अठखेली अलबेली गोपियाँ, और अपने कुएँ की शान ||
मस्त जोड़ियां बैलों वाली, गायों का वो झुण्ड अनेक |
मर्यादित जीवन के वो दिन, जिसमें होता काम वो नेक ||
प्रकृति और जीवन की रचना, प्रभु का था एक वरदान |
जब से कलयुग आन पड़ा है, लुप्त हुआ ऋषियों का ज्ञान ||
हमें प्रकृति से जुड़ना होगा, मत बैठो बनकर अनजान |
विश्व पटल पर नित दिन होते, देखो विनाश, ले लो ज्ञान ||
हृदय जौनपुरी

हृदय नारायण सिंह

मैं जौनपुर जिले से गाँव सरसौड़ा का रहवासी हूँ,मेरी शिक्षा बी ,ए, तिलकधारी का का लेख जौनपुर से हुई है,विगत् 32 बरसों से मैं मध्यप्रदेश के धार जिले में एक कंपनी में कार्यरत हूँ,वर्तमान में मैं कंपनी में डायरेक्टर के तौर पर कार्यरत हूँ,हमारी कंपनी मध्य प्रदेश की नं-1 कम्पनी है,जो कि मोयरा सीरिया के नाम से प्रसिद्ध है। कविता लेखन मेरा बस शौक है,जो कि मुझे बचपन से ही है, जब मैं क्लास 3-4 मे था तभी से