कविता
वो जो अपने थे पराये हो गए
प्यार में कसमें,वादें,जाए हो गए
इश्क़ भरपूर किया था।
नींदों को भी खुद से दूर किया था।
लौटने की उम्मीदें अब भी हैं
भले ही जमाने में हम
धोख़ा खाए हो गए।
तुमने थाम लिया हाथ किसी और का,
हमारे सुनहरे सपने, शायद काले साए हो गए।
खैर जी लेंगे हम बेख़ुदी की ज़िन्दगी
यह सोचकर
कि हमारी इबादतें किसी के
लिए नसीब और दुआएँ, हो गए।
— पवन’अनाम’
बरमसर